- 01 श्री पुनर्सत्य-आविर्भाव प्रसंग 96
- ईश्वर-प्रदत्त ग्रंथ के अवतरण की प्रक्रिया का वर्णन इस प्रसंग में किया गया है
- • संताप साधना व उसका शुभ परिणाम (संताप की साधना क्या होती है व उसका क्या परिणाम होता है) 96
- • ग्रंथ-अवतरण प्रक्रिया (किसी भी मस्तिष्क में ईश्वर-प्रदत्त ग्रंथ का अवतरण किस प्रकार होता है व मानस तथा देह पर उसके क्या प्रभाव होते हैं) 97
- • ईश्वर-प्रदत्त ग्रंथ के अवतरण की भाषा कौनसी होती है व उसका सांसारिक भाषा में अनुवाद 99
- • संसार की रचना के लिये आवश्यक तत्व व ज्ञान का मूल स्त्रोत क्या है 99
- • श्री समय-सतवाणी 101
- श्री सनातन सत्य धर्म, श्री समर्थ हिंदु विधान वर्तमान के लिये आवश्यक संस्कृति की आपूर्ति
- • श्रीजी द्वारा पवित्र आत्माओं से संदेश प्राप्त करना व उनके आधार पर पूर्व ग्रंथ श्री सत्यधर्म की रचना 101
- • अन्य माध्यमों द्वारा भी पूर्व काल में पवित्र आत्माओं से संदेश प्राप्त करना 102
- • मानस में ईश्वर प्रदत्त ग्रंथ के अवतरण का अनुभव 103
- • ग्रंथ अवतरण का श्रीजी की देह पर प्रभाव 104
- • ऋषि द्वारा भाषा की व्याख्या व ईश्वर के विचार के सांसारिक भाषा में अनुवाद द्वारा ग्रंथ की रचना 105
- • ग्रंथ अवतरण के पश्चात भविष्य के लिये चेतावनी-संदेश 108
- 02 श्रीजी संदेश 109
- • धर्म-धारणा की स्वीकार्यता (कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म-धारणा को क्यों स्वीकार करता है) 109
- • वर्तमान में आध्यात्म व धर्म-क्षेत्र में प्रचलित कुरीतियाँ 110
- • नव ग्रंथ का आविर्भाव व धर्म-सिद्धांतों की स्थापना (मानवता के विकास के साथ-साथ नवीन ग्रंथों की आवश्यकता) 112