हिंदु-तत्व संकट में है…
हिंदु-स्वाभिमान नष्टप्राय हो चुका है…
हिंदु-स्थान संकट में है…
हे स्वजनों, आदिकाल से लेकर वर्तमान तक सम्पूर्ण वसुंधरा पर धर्म की कोई वास्तविक एवम् न्यायोचित सत्य धारणा यदि कोई है तो वह है सनातन हिंदु धर्म। षेष जो भी हैं, वे सब सम्प्रदाय हैं। महान वेदंाग दर्षन के उद्भव से लेकर वर्तमान तक एक ऊँकार के बीज से अनेकों मत, पंथ, सम्प्रदायों का भी गठन होता रहा है, परंतु सबका मूल दर्षन एक ही है और वो है मानवता का संरक्षण व जीव मात्र का कल्याण।
इस दर्षन ने एक ऐसी सभ्यता का उद्भव किया, जिसने सम्पूर्ण विष्व के लिये ज्ञान केन्द्र खोले व विष्व गुरू कहलाई, वहीं अतुलनीय धन-सम्पदा अर्जित कर सोने की चिड़िया की उपमा धारण की।
इसी धन-सम्पदा के लालच में विदेषी सम्प्रदायों के बर्बर व असभ्य धारणा धारकों ने भारत वर्ष की पावन धरा पर बारंबार आक्रमण किये व यहाँ षासन स्थापित किये। इन्होंने पवित्र हिंदु संस्कृति पर प्रहार किये व संक्रमण तथा मलिनता फैलाई व षनैः षनैः जीवन षैली संक्रमित होती चली गई।
इस संक्रमण के दुष्परिणामस्वरूप व्यभिचार, भ्रष्ट-आचार, ढांेग, चमत्कार, कथित धर्माचार्याें द्वारा विभाजन की षिक्षा, छूत-अछूत, स्वर्ण-दलित, अति व्यापक धार्मिक साहित्य और व्यक्ति पूजा आदि ने समाज में अपनी जड़ें जमा लीं। हिंदुत्व की परिषोधन-व्यवस्था के नष्टप्राय होने से हमारे षत्रुओं को अवसर मिला व आज हम अपनी ही मातृ धरा पर न तो सुरक्षित हैं व न ही अपनी सुदृढ़ नीति, नैतिक आस्था एवम् चरित्र की रक्षा कर पा रहे।
मित्रों, हम हिंदु एक ईष्वर पर विष्वास करने वाले हैं। जब-जब धर्म की हानि होती है व मानवता संकट में आ जाती है तो धर्म की पुनर्स्थापना करने हेतु परम पिता अपना संदेष देते हैं। ये संदेष किसी व्यक्ति के द्वारा अथवा ग्रंथ के माध्यम से प्रसारित किये जाते हैं। यह कोई चमत्कार नहीं, वरन् एक परम्परा है।
वर्तमान काल में अधिकंाष हिंदु इस व्यवस्था पर से आस्था खो रहे हैं, जैसे तो ईष्वरीय-षक्ति का लोप हो गया हो, परंतु यह तो एक मूर्खतापूर्ण विचार है। ईष्वरीय सत्ता तो सर्वकालिक है, आदि से लेकर अंत तक रहने वाली है, अनन्त है, अनँत है।
आज जब हिंदुत्व पर संकट गहरा रहा है, अर्थात मानवता खतरे में है, तब परमात्मा ने पौष कृष्ण तृतीया संवत् 2070 दिनांक 20 दिसम्बर 2013 को मानवता के कल्याण के लिये प्रेरणा के माध्यम से एक ग्रंथ आदेष स्वरूप प्रदान किया, जो विधाता का विधान है, जो समर्थ हिंदु विधान है।
श्री समर्थ हिंदु विधान मानवता व हिंदुत्व के गौरव एवम् स्वाभिमान को समर्थ बनाने तथा धर्म की पुनर्स्थापना के उद्देष्य से प्रगट हुये हैं। यह विधान हिंदुत्व के अतिरिक्त अन्य धारणाओं के प्रति विरोध अथवा षत्रुता का भाव धारण नहीं करता, परंतु यदि इनसे हमारे स्व-तंत्र तथा व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक व राष्ट्र को संकट उत्पन्न होता है व न्यायोचित प्रक्रिया अन्तर्गत यह सिद्ध हो जाये तो व्यवस्था-अन्तर्गत समुचित प्रत्युत्तर देने का आदेष प्रदान करता है।
श्री समर्थ हिंदु विधान भारत देष के संविधान, ध्वज व न्याय व्यवस्था का पूर्णरूपेण सम्मान करता है परंतु संविधान द्वारा निर्देषित प्रक्रिया के अन्तर्गत लोक-तंत्र का मान रखते हुये भारत राष्ट्र को संवैधानिक रूप से हिंदु राज घोषित करवाने के लिये कृत-संकल्प है।
श्री समर्थ हिंदु विधान संघ की अन्तर्व्यवस्था को दोष-रहित बनाने, विवादों में सुनवाई, समन्वयन, ग्रंथ मीमंासा, संषोधन, निष्कासन इत्यादि के लिये श्री सत्यधर्म न्यायपीठ की व्यवस्था प्रदान करता है, जिसका कार्यक्षेत्र समर्थ हिंदु संघ व्यवस्था तक सीमित है, जिसमें अधिकतम दण्ड साक्ष्य-अन्वेषण के पष्चात संघ से निष्कासन है।
मित्रों, 2000 पृष्ठों, 1000 आदेषों व 100 प्रसंगों को समाहित किये श्री समर्थ हिंदु विधान ईष्वरीय आदेष है, जिसका अंगीकरण कोई आग्रह नहीं वरन् कर्त्तव्य है सभी हिंदुओं का क्योंकि ईष्वर परम पिता हैं और उनके षासन की स्थापना व आनन्दमय भोग हमारा कर्त्तव्य भी है व अधिकार भी।
आज्ञा से
श्री समर्थ हिंदुस्थान न्यास
सम्पर्क सूत्र
सत्यमित्र भास्कर
93141 79216
satyakarmbharat@gmail.com