प्र. श्री सनातन सत्य धर्म क्या हैं?

प्र. श्री सनातन सत्य धर्म क्या हैं?

उ. श्री सनातन सत्य धर्म वर्तमान समय की आवष्यकतानुसार परंपरागत रूप से ईष्वर प्रदत्त संदेष है, जो कि सम्पूर्ण मानवता व जीव कल्याण के उद्देष्य से अवतरित हुये हैं।

प्र. इस बात का क्या प्रमाण है कि यह ग्रंथ ईष्वर-प्रदत्त है?

प्र. इस बात का क्या प्रमाण है कि यह ग्रंथ ईष्वर-प्रदत्त है?

उ. ईष्वरीय सत्ता मात्र विष्वास पर आधारित है। आदिकाल से ही ईष्वर मानवता के कल्याण के लिये अपना मार्गदर्षन देते रहे हैं। यह तो एक परंपरा है। और श्रीजी ने तो कहा है कि जानना तो यह चाहिये कि क्या कहा गया न कि कैसे कहा गया।

प्र. क्या लोग इसे स्वीकार करेंगे?

प्र. क्या लोग इसे स्वीकार करेंगे?

उ. ग्रंथ की स्वीकार्यता आग्रह नहीं, कर्त्तव्य है सभी का।
योग्य आचार्य से ज्ञान प्राप्त करना, उस पर चिंतन व मनन करना, तत्पष्चात गहन मंथन व मंथन के परिणाम की स्वीकार्यता स्वभाविक ही है।

प्र. लोगों के जीवन पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?

प्र. लोगों के जीवन पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?

उ. जियो और जीने दो के सत्य सिद्धंात पर आधारित स्व-तंत्र के नियमों में जीना जहाँ एक ओर सभ्य व संास्कृतिक समाज की रचना करेगा, वहीं व्यक्तिगत जीवन में मन-मस्तिष्क की षंाति के स्वर्ग की स्थापना करेगा।

प्र. यह अन्य सनातन गं्रथों से किस प्रकार भिन्न है?

प्र. यह अन्य सनातन गं्रथों से किस प्रकार भिन्न है?

उ. सैद्धंातिक रूप से कोई भिन्नता नहीं। सनातन ग्रंथ प्रत्येक विषय पर हजारों वर्षाें के गहन चिंतन का परिणाम है जबकि श्री सनातन सत्य धर्म में वर्तमान समय की आवष्यकता के अनुसार सभी विषयों को एक ही ग्रंथ में समेटा गया है।

प्र. क्या मानवता व जीव कल्याण जैसे विषय के लिये आवष्यक सत्य-ज्ञान एक ही ग्रंथ में समा सकता है?

प्र. क्या मानवता व जीव कल्याण जैसे विषय के लिये आवष्यक सत्य-ज्ञान एक ही ग्रंथ में समा सकता है?

उ. मूल सिद्धांत तो संक्षिप्त ही होता है और सारगर्भित तथा परस्पर सम्बन्धित होता है, आवष्यकता तो योग्य आचार्य से ज्ञान प्राप्त करने व उस पर चिंतन व मनन करने की होती है।